-डॉ. अशोक कुमार मिश्र
रैगिंग से परेशान होकर १५ सितंबर को लखनऊ के आजाद इंस्टीट्ïयूट ऑफ इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी में बीटेक प्रथम वर्ष की छात्रा पूनम ने कैंपस में छत से कूदकर जान दे दी । इससे पूर्व इलाहाबाद विश्वविद्यालय परिसर में नौ सितंबर को छात्रसंघ बहाली की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे उग्र छात्रों ने वीसी दफ्तर पर पथराव किया, कई स्थानों पर तोडफ़ोड़ की। विश्वविद्यालय परिसरों में हो रही ऐसी घटनाएं कई सवाल खड़े करती हैं । कई विश्वविद्यालयों की तो हालत यह है कि उनमें छात्र हैं, शिक्षक हैं, लैब हैं, पुस्तकालय हैं, विशालकाय भवन हैं, लेकिन पढ़ाई का परिवेश नहीं है ।
आज विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनावों से उपजी राजनीति ने ऐसा रूप धारण कर लिया है कि मामूली बातों को लेकर कक्षाओं का बहिष्कार, प्रदर्शन, धरना, तालाबंदी, कामकाज ठप करना आम होता जा रहा है। अपनी राजनीति चमकाने के लिए आंदोलन में रुचि रखने वाले चंद छात्र पढ़ाई में व्यवधान का सबब बन जाते हैं । ऐसे में वे विद्यार्थी भी नहीं पढ़ पाते जो विशुद्ध पठन-पाठन की मंशा लेकर प्रवेश लेते हैं। गैर शैक्षणिक गतिविधियां उच्च शिक्षण संस्थानों के माहौल को प्रदूषित कर रही हैं ।
विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी भी विद्यार्थियों की पढ़ाई में बड़ी बाधा है। अकेले उत्तर प्रदेश में ही विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के हजारों पद रिक्त हैं। इसका खमियाजा विद्यार्थियों को ही भुगतना पड़ता है । कई बार जब कक्षाओं में विद्यार्थी होते हैं तो शिक्षक नहीं होते। कक्षा के समय में ही विश्वविद्यालयों की बैठकों, सेमिनार, मूल्यांकन कार्य, मौखिक परीक्षा या अन्य तद्संबंधी कार्य होते हैं । इससे भी पठन-पाठन प्रभावित होता है । कक्षाओं के नियमित संचालन में उत्पन्न व्यवधान भी विद्यार्थियों में भटकाव की वजह बनता है । सूबे में उच्च शिक्षण संस्थानों की स्थितियों को देखते हुए आज यह विचार करना नितांत जरूरी है कि कैसे परिसरों का माहौल ऐसा बनाया जाए जिससे विद्यार्थी पूरे मनोयोग से वहां पढ़ाई कर पाएं। आज ऐसी घटनाएं भी बढ़ी हैं जो ज्ञान केमंदिरों का माहौल दूषित कर रही हैं, उन्हें कैसे रोका जाए। मौजूदा दौर में उच्च शिक्षा में उपज रही चुनौतियों से जुड़े सवालों के जवाब तलाशने होंगे ।
विश्वविद्यालयों में अध्ययन-अध्यापन का परिवेश सृजित करने के लिए बहुत गंभीरता से प्रयास करने जरूरी हैं । ऐसा माहौल बनाना होगा कि विद्यार्थी पूरे मन से पढऩा चाहे और शिक्षक उसे पढ़ाएं। इसके बीच में कोई व्यवधान नहीं होना चाहिए । यह सब होगा तभी विश्वविद्यालयों में पढऩे वाले विद्यार्थी अपने भविष्य के सपनों में रंग भर पाएंगे। विश्वविद्यालय उनके सपनों को आधार देने का स्थान बने, इसके लिए पूरी गंभीरता और ईमानदारी से प्रयास करने होंगे ।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)
Tuesday, September 15, 2009
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